मेरे हाथों से छूट कर
दूर उड़ गयी थी वह तितली
मगर अब तक
उसके पंखों के नीले,सुनहरे काले रंग
मेरी उँगलियों में चिपके हुए हैं
मै रोज ताकता हूँ उन्हें
और उस बागीचे को
यादों में ढूढता रहता हूँ
जहाँ मैंने उसे पकड़ा था
चुपके से
रातरानी की झाड़ी के पास
लुकाछिपी खेलते हुए
तब मै पूरा का पूरा
मीठी खुशबू से भर गया था
लिसलिसा सा गया था मै
मेरी उँगलियाँ भी
उसके पंखों का रंग लिए
आज भी कभी-कभी
लिसलिसा जाता हूँ मै
खुशबू से भर जाता हूँ मै
आज भी
बहुत सुन्दर कविता--प्रकृति और भावनाओं का अच्छा संगम्।
जवाब देंहटाएंहेमन्त कुमार
धन्यवाद् हेमंत भाई,
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों बाद आज ब्लॉग खोला
आपकी टिप्पणी देखी . अच्छा लगा