चलो,
पूरी रात प्रतीक्षा के बाद
फिर एक नई सुबह होगी
होगी न ;
नई सुबह ?
जब आदमियत नंगी नहीं होगी
नहीं सजेंगीं हथियारों की मंडिया
नहीं खोदी जायेगीं नई कब्रें
नहीं जलेंगीं नई चिताएं
आदिम सोच,आदिम विचारों से
मिलेगी निजात
होगी न ;
नई सुबह ?
सब कुछ भूल कर
हम खड़े हैं
हथेलियों में सजाये
फूलों का बगीचा
पूरी रात जाग कर
फिर एक नई सुबह के लिए
होगी न
नई सुबह?
--के.रवीन्द्र
जब आदमियत नंगी नहीं होगी
जवाब देंहटाएंनहीं सजेंगीं हथियारों की मंडिया
नहीं खोदी जायेगीं नई कब्रें
नहीं जलेंगीं नई चिताएं
आदिम सोच,आदिम विचारों से
मिलेगी निजात
बहुत ही सशक्त और प्रभावशाली रचना----हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
नई पोस्ट का इंतजार है ..........
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