शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

नई सुबह

चलो,
पूरी रात प्रतीक्षा के बाद
फिर एक नई सुबह होगी

होगी ;
नई सुबह ?

जब आदमियत नंगी नहीं होगी
नहीं सजेंगीं हथियारों की मंडिया
नहीं खोदी जायेगीं नई कब्रें
नहीं जलेंगीं नई चिताएं
आदिम सोच,आदिम विचारों से
मिलेगी निजात

होगी ;
नई सुबह ?

सब कुछ भूल कर
हम खड़े हैं
हथेलियों में सजाये
फूलों का बगीचा
पूरी रात जाग कर
फिर एक नई सुबह के लिए

होगी
नई सुबह?
--के.रवीन्द्र

2 टिप्‍पणियां:

  1. जब आदमियत नंगी नहीं होगी
    नहीं सजेंगीं हथियारों की मंडिया
    नहीं खोदी जायेगीं नई कब्रें
    नहीं जलेंगीं नई चिताएं
    आदिम सोच,आदिम विचारों से
    मिलेगी निजात
    बहुत ही सशक्त और प्रभावशाली रचना----हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

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