शनिवार, 19 दिसंबर 2009

सब कुछ वैसा का वैसा

मेरे घर में सब कुछ सहेजा हुआ है अब तक
खिडकियों में तुम्हारी शक्ल
दरवाज़ों पर पांव
आँगन में खिलखिलाहट
कमरों में तुम्हारी गंध
बिस्तरों पर तुम्हारी छुअन

अब तक चिपकी हुई है
दीवारों पर तुम्हारी मुस्कुराहट
सब कुछ वैसा का वैसा

आले में हिदायतें
आलमारियों में ढेर सारी यादें
करीने से जमी हुई हैं
कैलेण्डर पर बीते दिनों का हिसाब
सबकुछ वैसा का वैसा

पर हाँ कहीं तस्वीर नहीं हैं

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