शुक्रवार, 13 नवंबर 2009




















आज शाम
फ़िर कुछ अनमनी सी हो गयी है |
गली में, खिड़कियों पर
उजाले अभी थिरके नहीं है
मुंडेर से उड़ा परिंदा
वापस नहीं लौटा है
सन्नाटा पसर गया है
चौराहे पर|
पडोसी
जश्न की तैयारियों में
व्यस्त है|
यह ख़बर कोई नई नहीं है
गली में
एक नितांत बूढी औरत
खिलखिला कर हंस रही है
शायद उसने देख ली है
मर्दानगी
मुहल्ले की |
अँधेरा ओढ़ कर
एक कोने
सो गया है गली का कुत्ता |
आज शाम
फ़िर कुछ अनमनी सी हो गयी है|
----के.रवीन्द्र

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