शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

चाह कर भी जब हम
जी नहीं पाते सोचा हुआ क्षण
बीता हुआ लगने लगता है
मीठा /
भविष्य ?
भविष्य की कल्पना में
टपकने लगती है लार /
फिर भविष्य
जब हो जाता है वर्तमान
घृणा होने लगती है
अपनी बीबी,बच्चों ,परिवार से /
घर का कोना-कोना भर जाता है
वितृष्णा से /
रोम-रोम से फूटने लगते हैं
मवाद भरे फोड़े /
हम तब भी जी लेते हैं
एक एस एम एस ,टेलीफोन काल
या एक पत्र की प्रतीक्षा में ,
जो कभी नहीं आते /
क्यों लोग भूल जाते हैं
अपना भाई, अपनी बहन
माँ -बाप,बीबी-बच्चे /
,,,,,,,,,,,,,,,
चाह कर भी तब हम
जी नहीं पाते

2 टिप्‍पणियां:

  1. priy bhaai, namaskaar!
    mai kavitaa kosh se anil janvijay. kyaa aapkaa e-mail kaa pataa mil saktaa hai. mai aapko shalabh shrii raam singh kii rachnaaon ke baare men likhnaa chaahataa hun. kavitakoshj kaa e-mail kaa pataa hai:
    kavitakosh@gmail.com.
    saadar
    anil janvijay

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  2. प्रिय भाई कुंअर रविन्द्र जी!
    आपने स्वर्गीय कवि शलभ श्रीराम सिंह की कुछ कविताएँ कविता कोश को भेजने के लिए कहा है। हम उनकी सारी रचनाएँ कोश में जोड़ने के लिए तत्पर हैं। उनके नाम से उनके पन्ने पर जोड़ने के लिए आप उनकी जितनी ज़्यादा से ज़्यादा रचनाएँ हमें भेज देंगे, हम उन सभी को जोड़ देंगे। उनके जीवनकाल में जो कविता-संग्रह प्रकाशित हुए थे, कृपया वे भी उपलब्ध करा दें, हम उन्हें भी जोड़ देंगे और इस काम के लिए आपके अनुगृहीत रहेंगे।
    उनकी डायरियाँ, लेख और अन्य गद्य-सामग्री हम गद्यकोश में जोड़ने के लिए तत्पर हैं। आप वह सब सामग्री भी हमें भेज सकते हैं। शलभ जी के बारे में संस्मरण, उनके इन्टरव्यू आदि भी अगर मिल सकें तो कृपया भेजें। इस तरह उनका सारा लेखन एक जगह पर उपलब्ध हो जाएगा और सारी दुनिया के पाठक उसे पढ़ सकेंगे। आपके उत्तर की कविताकोश टीम को बेचैनी से प्रतीक्षा रहेगी।
    कविता कोश का ई०मेल का पता है : kavitakosh@gmail.com
    हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ।
    सादर
    अनिल जनविजय
    सम्पादक
    कविता कोश
    aniljanvijay@gmail.com

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